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वेदांता की बड़ी उपलब्धि: जाम्बिया में हासिल किया तांबे की खदान का नियंत्रण, जानें क्यों है देश के लिए महत्वपूर्ण

मुंबई। भारतीय कंपनी वेदांता रिसोर्सेज को बड़ी सफलता हाथ लगी है। कंपनी ने जांबिया की तांबे की खदान केसीएम का नियंत्रण फिर से हासिल कर लिया है। 2.4% से अधिक उच्च-श्रेणी तांबे के भंडार के साथ केसीएम दुनिया में उच्च-श्रेणी के तांबे के सबसे बड़े भंडारों में से एक है।

वेदांता रिसोर्सेज होल्डिंग्स लिमिटेड के मुताबिक, कंपनी ने केसीएम व्यवस्था योजना के तहत अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप 245.75 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान कर दिया है। इससे केसीएम के निदेशक मंडल की बहाली और खदान पर वेदांता के पूर्ण प्रबंधन नियंत्रण की वापसी का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह वेदांता द्वारा उत्पादन बढ़ाने और केसीएम की पूरी क्षमता को अनलॉक करने से पहले एक आवश्यक पहला कदम है।

केसीएम में तांबे के अलावा कोबाल्ट का भी बड़ा भंडार है। कुल 412 हजार टन कोबाल्ट भंडार और संसाधनों के साथ केसीएम में वैश्विक स्तर पर शीर्ष 5 कोबाल्ट उत्पादकों में शामिल होने की क्षमता भी है। वेदांता ने न केवल केसीएम तांबे के उत्पादन को 300 हजार टन प्रति वर्ष तक बढ़ाने की योजना बनाई है, बल्कि केसीएम में उत्पादन क्षमताओं में सुधार करके कोबाल्ट उत्पादन को 1 हजार टन प्रति वर्ष से 6 हजार टन प्रति वर्ष तक बढ़ाने की भी योजना बनाई है।


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वेदांता बेस मेटल्स के सीईओ क्रिस ग्रिफिथ ने कहा, हमें केसीएम योजना के तहत धन के हस्तांतरण की पुष्टि करते हुए खुशी हो रही है। वेदांता जाम्बिया और जाम्बिया के लोगों के लिए प्रतिबद्ध है। हमें विश्वास है कि सरकार और अन्य प्रमुख हितधारकों के पूर्ण समर्थन से हम जल्द ही केसीएम की कायापलट करने और अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने में मदद कर पाएंगे।

वहीं, वेदांता समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने भी कहा, “मुझे खुशी है कि कोंकोला कॉपर माइंस वेदांता के पास वापस आ गई है। इस गौरवशाली अफ्रीकी देश और इसके लोगों के साथ हमारा लंबा इतिहास रहा है और मैं आने वाले दशकों में जाम्बिया के साथ और भी मजबूत संबंध बनाने की उम्मीद करता हूं।”

अग्रवाल ने कहा कि तांबा स्पष्ट रूप से भविष्य की धातु है, और इसकी सप्लाई चेन ऐसी है जिसे भारत सरकार भी सुरक्षित करने के लिए बेहद उत्सुक है। हमें उम्मीद है कि केसीएम इस मांग को पूरा करने में मदद करेगा और भारत और जाम्बिया के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को मजबूत करेगा।”

बता दें, तांबे की वैश्विक वार्षिक मांग 2040 तक लगभग 40% बढ़ने की उम्मीद है। ग्रीन एनर्जी, ईवी और विद्युतीकरण बढ़ने से इस मांग को और गति मिलने की उम्मीद है। यह अनुमान लगाया गया है कि पेरिस समझौते में उल्लिखित +1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने वाले वैश्विक तापमान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, 2025-2030 के बीच वैश्विक नवीकरणीय बुनियादी ढांचा खर्च को समर्थन देने के लिए लगभग 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर वार्षिक निवेश की आवश्यकता होगी।

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