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Consumer Forum का बड़ा फैसला, इलाज पर होने वाले खर्च की लिमिट नहीं तय कर सकती इंश्योरेंस कंपनी

वड़ोदरा के उपभोक्ता फोरम ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी को मोतियाबिंद के इलाज पर खर्च हुए 1.64 लाख का भुगतान करने का आदेश

नई दिल्ली। उपभोक्ता फोरम (Consumer Forum) ने एक अहम फैसले में कहा है कि इंश्योरेंस कंपनी यह नहीं तय कर सकती कि किस रोग के इलाज में कितना खर्च किया जाना चाहिए। कंपनी यह भी तय नहीं कर सकती कि किस रोग के लिए कौन सा उपचार जरूरी है और कौन सा गैर जरूरी। इसके साथ ही कंज्यूमर फोरम ने इंश्योरेंस कंपनी को मोतियाबिंद के इलाज में खर्च हुए 1.64 लाख रुपए शिकायतकर्ता को देने का आदेश दिया।

दरअसल, वडोदरा (गुजरात) के रहने वाले 61 वर्षीय मयूर परमार ने दिसंबर 2022 और जनवरी 2023 में अपनी दोनों आंखों का ऑपरेशन करवाया था। उन्हें दोनों आंखों में मोतियाबिंद की शिकायत थी। इलाज में उनके 1.64 लाख रुपए खर्च हुए। क्लेम के लिए इस इलाज का बिल उन्होंने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड में लगाया। लेकिन इंश्योरेंस कंपनी ने उनका आंशिक क्लेम 49000 रुपए ही अप्रूव किया। परमार ने बताया कि बीमा कंपनी ने उनका क्लेम यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अस्पताल ने गैरजरूरी जांचें कीं और इलाज के लिए अनाप-शनाप खर्च वसूला। इलाज में हुआ खर्च वाजिब नहीं था। बीमा कंपनी ने उनका 49 हजार का क्लेम ही अप्रूव किया।

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पॉलिसी का ठीक से अध्ययन किए बिना खारिज किया क्लेम

पूरा पैसा न मिलने पर मयूर परमार ने फरवरी में उपभोक्ता फोरम में गुजार लगाई। वडोदरा में ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ केस फाइल किया और पूरा मेडिकल खर्च उन्हें दिलाने की गुहार लगाई। उन्होंने जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम में दलील दी कि बीमा कंपनी ने उनकी पॉलिसी को ठीक से चेक किए बिना ही उनका क्लेम खारिज कर दिया। उनकी पॉलिसी में सभी रोग कवर थे। दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद उपभोक्ता अयोग ने पाया कि परमार की पॉलिसी में इसका जिक्र नहीं था कि किस रोग के इलाज में कितना क्लेम लिया जा सकता है। साथ ही पॉलिसी में यह जिक्र नहीं था कि वाजिब खर्च कितना माना जाएगा।

बीमा कंपनी यह तय नहीं कर सकती कि कौन से इलाज में कितना खर्च होगा: Consumer Forum 

फोरम ने फैसले में कहा कि अलग-अलग अस्पतालों में डॉक्टरों की फीस अलग-अलग होती है। विशेषज्ञ डॉक्टर की फीस सामान्य डॉक्टरों से ज्यादा होती है। बीमा कंपनी यह तय नहीं कर सकती कि इलाज के दौरान कौन सा खर्च वाजिब है और कौन सा नाजायज। इसलिए बीमा कंपनी यह तय नहीं कर सकती कि कौन से इलाज में कितना खर्च होगा। फोरम ने यह भी कहा कि बीमा कंपनी कस्टमरी चार्ज (इलाज में खर्च की सीमा) भी तय नहीं कर सकती। कंपनी यह भी नहीं तय कर सकती कि डॉक्टर इलाज के दौरान कौन सा ट्रीटमेंट करेंगे और कितना चार्ज लेंगे।

कंपनी को ब्याज सहित भुगतान, मानसिक प्रताड़ना और लीगल खर्च देने के भी आदेश

फोरम ने कहा कि मोतियाबिंद का इलाज सामान्य है। लेकिन मेडिकल खर्च इस बात पर निर्भर करता है कि इलाज किस डॉक्टर ने किया और आंख में कौन सा लेंस लगाया। वह लेंस कितना महंगा था। फोरम ने कहा कि बीमा कंपनी का आंशिक क्लेम पास करने का निर्णय गलत है। फोरम ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वह दो माह में मयूर परमार को क्लेम की बाकी राशि 1.15 लाख रुपए का भुगतान करे और इस पर 9% सालाना ब्याज भी दे। फोरम ने मानसिक प्रताड़ना लीगल खर्च के 5000 रुपए का भुगतान करने का भी आदेश दिया

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