म्यूचुअल फंड प्लान दो तरह के होते हैं, रेगुलर और डायरेक्ट प्लान। अगर आप म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहते हैं तो इन दोनों प्लान के अंतर को समझना जरूरी है। डायरेक्ट प्लान में निवेशकों और फंड हाउस के बीच कोई मीडिएटर नहीं होता और इस वजह से कोई कमीशन नहीं लगता है। जबकि रेगुलर प्लान में डिस्ट्रीब्यूटर की मदद ली जाती है। बाजार नियामक सेबी के आदेश पर साल 2013 में पहली बार डायरेक्ट प्लान की शुरुआत की गई थी। हम आपको डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान के अंतर को समझा रहे हैं, ताकि म्यूचुअल फंड का विकल्प चुनने में आपको कोई दुविधा ना हो।
रेगुलर और डायरेक्ट प्लान में मुख्य अंतर
दोनों वैरिएंट में सबसे बड़ा फर्क ये है कि रेगुलर प्लान में निवेश म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर [एमएफडी] के माध्यम से किया जाता है। ये एक प्रकार के ब्रोकर या एजेंट की भूमिका निभाते हैं, जो केवाईसी जमा करने, दस्तावेज प्रदान करने और निवेशकों को सलाह देने का काम करते हैं। इन सेवाओं के बदले फंड हाउस उन्हें कमीशन प्रदान करते हैं।
वहीं, डायरेक्ट प्लान निवेशक सीधे फंड हाउस या किसी प्लेटफॉर्म से खरीदते हैं। इसमें फंड हाउस को किसी को कोई कमीशन नहीं देना होता, इसलिए इसकी लागत कम होती है। अगर आप किसी प्लेटफ़ॉर्म से निवेश कर रहे थे और वह बंद हो गया है, तो भी चिंता न करें, क्योंकि पैसा फंड हाउस के पास है।
रेगुलर प्लान का कुल खर्च अनुपात [टीईआर] डायरेक्ट प्लान की तुलना में अधिक होता है। उदाहरण के लिए टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड के डायरेक्ट प्लान का टीईआर 0.38 फीसदी से 1.80 फीसदी के बीच है, जबकि इसी फंड के रेगुलर प्लान का टीईआर 1.6-2.6 फीसदी के बीच होता है।
लंबी अवधि में डायरेक्ट प्लान में निवेश की गई राशि रेगुलर प्लान की तुलना में काफी अधिक रिटर्न देती है। उदाहरण के लिए, केनरा रोबेको ब्लू चिप इक्विटी फंड पर विचार करें, जिसके रेगुलर प्लान का टीईआर 1.86 फीसदी है, जबकि डायरेक्ट प्लान की लागत 0.38 प्रतिशत है। यदि आपने साल 2013 में 1 लाख रुपए की एकमुश्त राशि का निवेश किया होता तो रेगुलर प्लान में यह राशि बढ़कर 3.8 लाख रुपए हो गई होती, जबकि डायरेक्ट प्लान में यही राशि 4.29 लाख रुपए होती।
क्या रेगुलर प्लान से डायरेक्ट में स्विच कर सकते हैं?
यदि आपने रेगुलर प्लान में निवेश किया हुआ है और आप उसी फंड के डायरेक्ट प्लान में स्विच करना चाहते हैं, तो आपको पहले रेगुलर प्लान में अपने मौजूदा निवेश को निकालना होगा। फिर उस पैसे से डायरेक्ट प्लान की यूनिट खरीदनी होगी। ध्यान रखें कि इस दौरान आपको एग्जिट लोड और टैक्स का भुगतान करना पड़ सकता है। इसलिए अगर लागत के नजरिये से देखा जाये तो रेगुलर से डायरेक्ट प्लान में स्विच करना नई बिक्री और खरीद के समान है।
डायरेक्ट फंड या रेगुलर, किसमें निवेश करना बेहतर?
अगर आप निवेश के मामले में नए हैं तो आप डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए रेगुलर प्लान का विकल्प चुन सकते हैं। डिस्ट्रीब्यूटर आपके लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए सही फंड के चुनाव में मदद करेगा। अनुभव हासिल करने के बाद भी आप अपने मौजूदा निवेश को रेगुलर प्लान के तहत रख सकते हैं, क्योंकि स्विच करने से एग्जिट लोड और टैक्स का भुगतान करना पड़ सकता है। लेकिन नए निवेश आप डायरेक्ट प्लान के जरिए कर सकते हैं। डायरेक्ट प्लान में जाने से पहले सुनिश्चित कर लें आपके पास सही फंड चुनने और अपने पोर्टफोलियो को बनाए रखने के लिए सही और पर्याप्त जानकारी है।
जब आप किसी एजेंट को लेन-देन करने का काम सौंपते हैं, तो यह जोखिम भी होता है कि वह एजेंट आपके मुनाफे से ज्यादा अपने कमीशन पर ध्यान दे। इसलिए रेगुलर प्लान में निवेश के दौरान भी अपने निवेश पर निगाह बनाए रखें।

मनीलाभ डॉट कॉम में सीनियर कॉपी रॉइटर। बिजनेस पत्रकारिता में तीन साल का अनुभव। मनीलाभ से पहले राजस्थान पत्रिका में बतौर सब एडिटर काम किया। खाली समय में पढ़ना और घूमना पसंद है।