GST: गुड्स ट्रांसपोर्ट एजेंसी से जुड़ा अप्रत्यक्ष कर चाहे वह सर्विस टैक्स हो या जीएसटी, कभी भी भ्रम या विवादों के परे नहीं रहा है। अधिकांश गुड्स ट्रांसपोर्ट एजेंसी जीएसटी रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म (आरसीएम) के तहत आती थीं, लेकिन फॉरवर्ड चार्ज के तहत एक उन्हें एक विकल्प दिया गया, ताकि वे 12 प्रतिशत जीएसटी चुका कर अपने द्वारा चुकाए गए कर का इनपुट टैक्स ले सकें।
आरसीएम के तहत तो कोई इनपुट मिलता ही नहीं है, इसलिए गुड्स ट्रांसपोर्ट एजेंसी 12 प्रतिशत की दर से GST चुका कर इनपुट क्रेडिट भी ले सकती हैं। यह इनपुट ट्रक की खरीद, बीमा, मरम्मत, टायर की खरीद इत्यादि पर चुकाए हुए कर का होता है।
GST में फॉरवर्ड चार्ज का विकल्प लेने वाला डीलर 12 प्रतिशत की जगह 5 प्रतिशत कर का भुगतान भी कर सकते हैं, लेकिन वहां ट्रांसपोर्ट एजेंसी को इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है। इसकी ज्यादा व्यवहारिकता नहीं है। इसलिए इसे इस लेख में हम व्यवहारिकता की दृष्टी से फॉरवर्ड चार्ज को 12 प्रतिशत कर का विकल्प कह रहें हैं।
आइये हम इस 12 फीसदी GST के विकल्प का अध्ययन करते हैं क्योंकि यह प्रावधान अपने आप में थोड़ा जटिल है और इसमें भी पूरी की पूरी ITC लेना संभव ही नहीं है। दूसरा, इसे समझना भी करदाताओं के लिए थोड़ा मुश्किल है तो फिर इसमें गलती होने की संभावना बनी रहती है।
आइये इसे सरल और साधारण भाषा में समझने का प्रयास करें कि आखिर गुड्स ट्रासपोर्ट एजेंसी के लिए जीएसटी के 12 फीसदी कर का प्रावधान क्या है और इनका किस तरह से पालन किया जाना चाहिए।
गुड्स ट्रांसपोर्ट एजेंसी के रिवर्स चार्ज मेकेनिज्म से जुड़े प्रावधान तो बहुत साफ़ हैं, इसलिए हमारा मुख्य ध्यान यहाँ फॉरवर्ड चार्ज के तहत लागू होने वाले प्रावधान पर ही रहेगा। आइये सबसे पहले समझ लें कि यह आरसीएम (रिवर्स चार्ज मेकेनिज्म) और फॉरवर्ड चार्ज क्या है, ताकि आपको मुख्य विषय आसानी से समझ आ जाए। यहां हम बहुत अधिक तकनीकी पक्ष में जाने की जगह सरल भाषा में प्रावधान को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।
जीएसटी में मुख्य रूप से फॉरवर्ड चार्ज के तहत कर लगता है अर्थात माल की बिक्री करने वाला या सेवा प्रदान करने वाला अपने क्रेता से टैक्स एकत्र कर कर जमा कराता है। इसे जीएसटी में फॉरवर्ड चार्ज कहा जाता है और अधिकांश जीएसटी इसी फॉरवर्ड चार्ज द्वारा अर्थात विक्रेता द्वारा ही सरकार को चुकाया जाता है।
आरसीएम एक अपवाद है। सरकार ने कुछ सेवाओं एवं वस्तुओं की खरीद को अधिसूचित किया है, जिनके खरीददारों को टैक्स का भुगतान करना होता है और जहां इसकी इनपुट कानूनन उपलब्ध होती है, वहां इसकी इनपुट मिल जाती है। यानी आप एक तरफ आरसीएम के तहत अपनी खरीद पर कर चुकाते हैं और इसी का इनपुट क्रेडिट ले लेते हैं।
ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लिए यह माना गया था कि यह सेक्टर बहुत बड़ा है और यह जीएसटी की प्रक्रियाओं का पालन करने में कठिनाइयां अनुभव करता है। इसलिए सबसे पहले अधिकांश ट्रांसपोर्ट सेक्टर यानी गुड्स ट्रांसपोर्ट एजेंसी को आरसीएम के तहत दिया गया। यानी जो इस सेवा का उपयोग करता है, वही टैक्स भरे और वही इसकी इनपुट प्राप्त कर ले।
इसी कारण से ट्रांसपोर्ट एजेंसियों को रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता से भी मुक्त रखा गया और उन्हें एक ट्रांसपोर्ट आईडी देने का प्रावधान बनाया गया। ताकि वे ई-वे बिल से जुड़ी प्रक्रियाओं का पालन कर सकें। अधिकांश ट्रांसपोर्ट एजेंसियां इसी प्रावधान के तहत कार्य कर रही है, जिनमें से अधिकांश के पास अपने ट्रक नहीं हैं।
लेकिन इससे वे ट्रांसपोर्ट कंपनियां सहमत नहीं थी, जो अपने खुद के ट्रक खरीद कर काम करती हैं। क्योंकि उन्हें ट्रक की खरीद, बीमा, रखरखाव, पार्ट्स एवं टायर पर लाखों रुपए की जीएसटी का भुगतान करना पड़ता है और फिर उन्हें इनपुट नहीं मिलता। इसलिए वे फॉरवर्ड चार्ज का विकल्प लेती हैं।
यहां यह ध्यान रखें कि यदि एक ट्रांसपोर्ट एजेंसी ने फॉरवर्ड चार्ज के तहत कोई विकल्प लिया है तो उसे इसका पालन पूरे साल करना होगा। जैसे मान लीजिये कि आपने 12 फीसदी का विकल्प लिया है तो इसका आपको पूरे वर्ष पालन करना पड़ेगा। एक और बात, वर्ष पूरा होने के बाद भी निकलने की भी कुछ पेचीदगियां हैं, जिन्हें हम आगे जानेंगे।
किसके लिए काम का है 12 प्रतिशत GST का विकल्प?
मान लीजिए इसका पूरा लाभ तो वही ट्रांसपोर्ट एजेंसी ले सकेगी, जो अपनी सारी सेवा 12 फीसदी जीएसटी वसूल करते हुए देती है। इसे एक उदाहरण के द्वारा समझ लें। X ट्रांसपोर्ट कम्पनी के ट्रक जयपुर से अहमदाबाद माल 12 प्रतिशत जीएसटी चार्ज कर ले जाते हैं, तो वापसी में भी उन्हें 12 प्रतिशत ही चार्ज कर माल लाना होगा। यदि कोई कहे कि यह संभव नहीं है तो फिर उसे पहले ही फॉरवर्ड चार्ज में जाते समय सोच लेना चाहिए कि आप फॉरवर्ड चार्ज और आरसीएम दोनों में एक साथ नहीं रह सकते। कुछ ट्रांसपोर्ट कम्पनियां किसी एक कम्पनी के साथ एक अनुबंध करती है, जिसके तहत मान लीजिये कि वे X स्थान से उनके लिए सीमेंट लेकर जाती है और जहां पहुंचती हैं, वहीं से या उसके आसपास की जगह से कोयला या अन्य कच्चा माल लेकर आती है तो उनके लिए दोनों चक्कर में 12 प्रतिशत जीएसटी चार्ज करना आसान होता है और इस प्रावधान की सबसे आदर्श स्थिति यही है।
अब आप मान लीजिये कि आप ऐसी व्यवस्था कर लेते हैं कि आप जाने और लौट कर आने दोनों में ही 12 प्रतिशत जीएसटी चार्ज करने की व्यवस्था कर लेते हैं और ऐसा वहां भी पाने में सफल होते हैं, जहां उनका कोई ऊपर बताये गए उदाहरण की तरह सीमेंट ले जाने और कोयला लाने का अनुबंध नहीं होता है, लेकिन हर बार इसमें सफलता मिले इसमें कई अड़चनें हैं। आइये देखें क्या वे हालात हैं जो इस मामले में अड़चन उत्पन्न करते हैं :
1. | कोई भी कम्पनी माल तो कई जगह भेजती है, लेकिन वहीं से उसे कुछ मंगाना हो यह अधिकांश समय संभव नहीं होता है। तो फिर 12 प्रतिशत वाला ग्राहक आपको खुद ढूंढना पड़ेगा। उसके मिलने में क्या परेशानी है वो आगे देखते हैं। |
2. | कुछ कंपनियों के पास पहले से इनपुट क्रेडिट पड़ी होती है। जहां भारी कैपिटल गुड्स खरीदा जाता है, वहां अकसर होता है। ये कंपनियां ट्रांसपोर्ट पर 12 प्रतिशत जीएसटी मांगने वालों से दूर रहती हैं, ताकि उनकी जमा ITC और नही बढ़े। |
3. | यदि आप अपने वाहन में कृषि पदार्थ (जैसे अनाज, तिलहन, दूध एवं अन्य वस्तुएं) का परिवहन करते हैं, तो आप इस पर 12 प्रतिशत कर नहीं लगा सकते हैं, क्योंकि इनका ट्रांसपोर्ट करमुक्त है। करमुक्त ट्रांसपोर्ट पर आपको आनुपातिक इनपुट क्रेडिट को छोड़ना पड़ेगा यानी रिवर्स करना होगा। |
4. | इसके अतिरिक्त जब ट्रांसपोर्ट एजेंसी खुद के लिए माल की बुकिंग नहीं कर पाती है तब वह किसी दूसरी ट्रांसपोर्ट कंपनी को अपना वाहन दे देती है तो वह भी कर मुक्त है। करमुक्त ट्रांसपोर्ट पर आपको आनुपातिक इनपुट क्रेडिट को छोड़ना पडेगा अर्थात रिवर्स करना होगा। |
5. | यदि आप अनरजिस्टर्ड व्यक्ति का माल ट्रांसपोर्ट करते हैं तो वह भी करमुक्त सेवा होती है। |
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आपको हर बार 12 प्रतिशत का ग्राहक मिल जाएगा? यदि ऐसा है तो आपके लिए 12 प्रतिशत फॉरवर्ड चार्ज एक आदर्श स्थिति है। लेकिन, ऐसा नहीं है तो फिर आपके लिए 12 प्रतिशत फॉरवर्ड चार्ज में आपको पूरी इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी और आपने अनजाने में पूरी क्रेडिट ले ली तो भविष्य में आपको यह ब्याज सहित भुगतान करना पड़ेगा। आइये इसे एक उदहारण के जरिये समझने का प्रयास करें:
1 अप्रैल 2023 को X Transport Company ने 5 ट्रक ख़रीदे और इसकी इनपुट क्रेडिट 39.20 लाख रुपए बनी। X Transport Company फॉरवर्ड चार्ज का विकल्प लेते हए 39.20 की इनपुट क्रेडिट क्लेम की एवं वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान बीमा, मरम्मत, टायर एवं खर्चों की इनपुट 12 लाख रुपए और क्लेम की। इस तरह से 2022-23 में कुल 51.20 लाख इनपुट क्रेडिट क्लेम की।
आइये अब देखें कि वर्ष के दौरान इस GTA ने निम्न प्रकार से सेवाएं दी है :-
कुल सेवा | 7 | 100.00% |
सेवा का प्रकार | रकम (करोड़ रुपए में ) | प्रतिशत |
12% की दर से दी गई सेवा | 5 | 71.43% |
कर मुक्त सेवा | 2 | 28.57% |
तो अब आप मान लीजिये कि आपको इस वर्ष की उपलब्ध क्रेडिट का 28.57% रिवर्स करना पड़ेगा। लेकिन पूरे वर्ष के दौरान आपने क्रेडिट ली है 51.20 लाख रुपए ली है तो क्या अब आपको इस 51.20 लाख रुपए का 28.57% इनपुट क्रेडिट रिवर्स करनी होगी? ऐसा नहीं है। आइए जानते हैं कि किस तरह से इनपुट क्रेडिट का रिवर्स होगा:
- सबसे पहले तो ट्रक को छोड़ कर इस वर्ष में जो क्रेडिट आपने ली है अर्थात बीमा, मरम्मत, रखरखाव की क्रेडिट तो आपको इस इनपुट क्रेडिट का अनुपातिक इनपुट क्रेडिट को रिवर्स करना होगा। इस वर्ष में ट्रक को छोड़कर जो 12 लाख रुपए की इनपुट क्रेडिट ली है और उसका 28.57% 3.43 लाख रूपये होता है और इसे रिवर्स करना होगा। इसके लिए आप नियम 42 देखें।
- अब ट्रक की इनपुट क्रेडिट को देखते हैं। इसके लिए हमें जीएसटी का नियम-43 देखना होगा। उसके अनुसार एक ट्रक की जिंदगी 5 वर्ष मानना होगा और इस प्रकार से ट्रक की कुल ITC को हम 60 से भाग देंगे तो प्रतिमाह की क्रेडिट 65333 रुपए होती है। इस प्रकार पूरे साल की इनपुट क्रेडिट 65333 X12 = 783996 हुई और इसका 28.57% 2,23,987 होता है, जिसे रिवर्स करना होगा।
- इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुल 3.43 लाख+2.24 लाख = 5.67 लाख रुपए की इनपुट क्रेडिट को रिवर्स करना होगा।
इस प्रकार से 12 प्रतिशत के विकल्प में जाने वाली ट्रांसपोर्ट कम्पनियां उनके पास जिस तरह का बिजनेस है, उसके हिसाब से इनपुट क्रेडिट के रिवर्स का प्रावधान अपने फंड्स में बना कर रखें। एक समय ऐसा भी आएगा जब आपकी इनपुट क्रेडिट समाप्त हो जाएगी और आपको यह रकम रोकड़ में जमा करवानी होगी और तब फंड्स की जरूरत होगी।
इसी वर्ष में आप देख लीजिये कि आउटपुट क्रेडिट 60 लाख रूपये होती है तो आइये टैक्स भुगतान का एक हिसाब देख लें :-
विवरण | रकम (लाख रुपए में) |
आउटपुट टैक्स | 60 |
इनपुट क्रेडिट | |
ट्रक पर इनपुट क्रेडिट | 39.2 |
अन्य इनपुट क्रेडिट | 12 |
कुल इनपुट क्रेडिट | 51.2 |
इनपुट क्रेडिट रिवेर्स | 5.67 |
कुल इनपुट उपलब्ध | 45.53 |
रोकड़ में भुगतान | 14.47 |
अब यदि इसी प्रकार का बिजनेस अगले वर्ष भी रहता है तो फिर से लगभग इतना ही रिवर्स करना होगा और यह सिलसिला 5 साल तक चलेगा और इस प्रकार से किसी भी ट्रक पर लिया गया इनपुट क्रेडिट समाप्त मान लिया जाएगा। उसके बाद के वर्षों में भी आप सामान्य इनपुट क्रेडिट (ट्रक को छोड़कर) का भी आनुपातिक रिवर्सल करना होगा।
जीएसटी से जुड़े मामलों के एक्सपर्ट, पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट, जब टैक्स के नंबरों और कागजों से फुर्सत मिलती है तब कार्टून पर हाथ आजमा रहे होते हैं।