Home Top Story टाटा मोटर्स का बंटवारा होगा, शेयरधारकों को क्या मिलेगा, कब तक पूरा होगा प्रॉसेस

टाटा मोटर्स का बंटवारा होगा, शेयरधारकों को क्या मिलेगा, कब तक पूरा होगा प्रॉसेस

टाटा मोटर्स का बंटवारा होगा, शेयरधारकों को क्या मिलेगा, कब तक पूरा होगा प्रॉसेस

मुंबई। देश की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों में शुमार टाटा मोटर्स का बंटवारा होगा। कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने अपने कमर्शियल व्हीकल (सीवी) और पैसेंजर व्हीकल (पीवी) कारोबार को अलग-अलग करने का बड़ा फैसला लिया है। इसके लिए कंपनी कम्पोजिट स्कीम ऑफ अरेंजमेंट तैयार कर रही है। इस योजना के तहत कॉमर्शियल व्हीकल बिजनेस को एक अलग लिस्टेड कंपनी में बदल दिया जाएगा, जबकि पैसेंजर व्हीकल बिजनेस मौजूदा लिस्टेड कंपनी में रहेगा। इस बंटवारे के बाद शेयर बाजार को टाटा ग्रुप की एक और कंपनी निवेश के लिए मिल जाएगी।

टाटा मोटर्स का बंटवारा: शेयरधारकों को कितने शेयर मिलेंगे?

टाटा मोटर्स की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, इस विभाजन के बाद भी टाटा मोटर्स के मौजूदा शेयरधारकों की दोनों ही कंपनियों में समान हिस्सेदारी रहेगी। एक शेयरधारक के पास नई सीवी कंपनी और मौजूदा पैसेंजर व्हीकल कंपनी दोनों में बराबर के शेयर होंगे।  यानी अगर किसी के पास टाटा मोटर्स के 100 शेयर हैं तो उसे नई कंपनी का भी 100 शेयर मिलेगा।

टाटा मोटर्स का बंटवारा क्यों कर रहा बोर्ड?

कंपनी का मानना है कि इस विभाजन से दोनों ही बिजनेस अपने-अपने क्षेत्र में ज्यादा तेजी से आगे बढ़ सकेंगे। इससे शेयरधारकों को भी ज्यादा फायदा होगा।

बंटवारे के बाद किस कंपनी के पास क्या कारोबार?

इस योजना के तहत टाटा मोटर्स का कमर्शियल व्हीकल बिजनेस, जिसमें इसके सारे एसेट्स, लायबिलिटीज और कर्मचारी शामिल हैं, एक नई कंपनी टाटा मोटर्स कमर्शियल व्हीकल लिमिटेड (टीएमएलसीवी) में ट्रांसफर हो जाएगा। वहीं, मौजूदा पैसेंजर व्हीकल बिजनेस वाली कंपनी टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल लिमिटेड (टीएमपीवी) का विलय मौजूदा टाटा मोटर्स लिमिटेड में हो जाएगा।

योजना पूरी होने के बाद दोनों कंपनियों का नाम बदल दिया जाएगा। कमर्शियल व्हीकल वाली कंपनी का नाम टाटा मोटर्स लिमिटेड ही रहेगा, जबकि पैसेंजर व्हीकल वाली कंपनी का नाम टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल्स लिमिटेड हो जाएगा।

कब तक पूरा होगा टाटा मोटर्स का बंटवारा?

इस योजना को पूरा होने में काफी समय लग सकता है। कंपनी को शेयरधारकों, लेनदारों और सरकारी एजेंसियों से मंजूरी लेनी होगी, जिसमें करीब 12 से 15 महीने लग सकते हैं।

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