देश में इनकम टैक्स और जीएसटी से जुड़े नोटिसों की बाढ़ सी आ गई है। सीए सुधीर हालाखंडी (Sudhir Halakhandi) इस समस्या की वजह और इसके समाधान दोनों के बारे में बता रहे हैं।
देश का करदाता इस समय जीएसटी एवं आयकर दोनों ही करों में आने वाले लगातार और बहुत अधिक संख्या में विभिन्न मुद्दों से संबंधित नोटिस से परेशान ही नहीं, बल्कि आहत है।
जीएसटी में कर निर्धारण और रिटर्न की जांच अपनी तय समय अवधि से पहले ही बहुत पीछे चल रही है और इस समय जिन मुद्दों पर नोटिस आ रहे हैं, उनमें से अधिकांश तकनीकी हैं और बहुत से जवाब देने के बाद बिना किसी अतिरिक्त डिमांड के समाप्त हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त, इस समय आयकर विभाग की ओर से भी बड़ी तादात लोगों को विभाग के प्राप्त जानकारी और भरे हुए रिटर्न्स में फर्क के नोटिस जारी हुए है।
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आइये पहले जीएसटी के बात करें। जीएसटी को एक स्वयं संचालित कर प्रणाली के रूप में लागू किया गया था। इसका तकनीकी पक्ष बहुत ही मजबूत होने का वादा किया गया था और यह भी कहा गया था कि अधिकाश कर प्रणाली स्वत: निर्धारण कर प्राणाली होगी। इसमें मानव हस्तक्षेप कम से कम होगा।
लेकिन, जमीनी स्तर काम कर रहे कर सलाहकार, व्यापारी और टैक्स विशेषज्ञ से आप बात करें तो आपको पता लगेगा कि वास्तविकता कुछ और ही है। मिसमैच के नोटिस इस वजह से आते हैं, क्योंकि जीएसटी विक्रेता की सूचना पर आधारित टैक्स सिस्टम हो गया है, जहां खरीदार को यह अधिकार ही नहीं है कि वह अपने ख़रीदे माल की सुचना दे सके। मूल जीएसटी की योजना में ऐसा नहीं था। इतने नोटिस जीएसटी में जारी होंगे, इसकी कल्पना तो जीएसटी कानून बनाने वालों ने भी नहीं की थी।
इसी तरह, आयकर में सरकार के पास बहुत सी जानकारी उपलब्ध है, क्योंकि इस समय अधिकांश लेनदेन पैन पर आधारित है। इसलिए आप मान सकते हैं कि वहां सूचना की बाढ़ आई हुई होती है। मशीनें एवं सॉफ्टवेयर कुछ सूचनाओं के आधार पर करदाता के रिटर्न को अपनी तरह से ढूढ़ते हैं, यदि वह रिटर्न में वैसी की वैसी नहीं मिलती है तो नोटिस या सूचना जारी हो जाती है।
यह तो सर्वमान्य सत्य है कि मशीनों के पास दिमाग नहीं होता है और दूसरा हर करदाता का अपने रिटर्न में सूचना देने का तरीका भी अपना ही होता है। अब इस तरह से नोटिस जारी होने पर इनकी संख्या एक साथ बहुत अधिक बढ़ जाती है, क्यों मशीनों की इस तरह से कार्य करने की गति बहुत तेज होती है।
एक बार नोटिस जारी हुआ तो करदाता का बहुत सा समय उसे देखने में, जांच करने में निकल जाता है। नोटिस या सूचना प्राप्त होते ही करदाता अपना काम शुरू कर चुका होता है और इस सम्बन्ध में सरकार का कोई स्पष्टीकरण आने तक, जैसा कि अभी हुआ है, वह अपना बहुत सा समय और मेहनत नष्ट कर चुका होता है।
जीएसटी में भी मशीनी नोटिसों का यही हाल है। बाकी तो छोड़ दीजिये, बैंक खाते अपडेट करने के भी नोटिस लाखों में जारी हुए है। देश में सारे बैंक खाते पैन आधारित हैं और जीएसटी खुद भी पैन आधारित है और देश में कुल बड़े बैंक 50 भी नहीं है, तो ऐसे में लाखों की संख्या में नोटिस जारी करने की जगह किसी केंद्रीयकृत सॉफ्टवेयर और बैंकों से डाटा प्राप्त कर यह कार्य आसानी से किया जा सकता था। जबकि इस समय लाखों करदाता इस कार्य को अलग-अलग कर रहे हैं।
एक साथ बड़ी संख्या में नोटिस जारी होने का एक कारण तो यह है कि सूचना एकत्र करने वाला और उसे अपनी तरह से विश्लेषण करने वाला तंत्र या तो त्रुटिपूर्ण है या अनावश्यक रूप से अति सक्रीय है। यदि मशीनें एक ही तरह की गलती हजारों या लाखों करदाताओं में बता रही हैं तो पहले ट्रायल बेस पर 1 या 2 प्रतिशत करदाताओं को नोटिस जारी कर उनके जवाब का विश्लेषण कर यह तय होना चाहिए कि लाखों नोटिस की जरूरत है भी या नहीं? क्योंकि लाखों नोटिस तो एक बटन दबाने पर जारी हो जाते हैं, लेकिन उनके जवाब के लिए लाखों करदाताओं को अपना कीमती समय और परिश्रम बर्बाद करना होता है।
सूचना तकनीक भले ही विकसित हो चुकी है लेकिन कृत्रिम बुद्धि अभी विकास के प्राम्भिक चरण में है और फिलहाल इसका उपयोग जमीनी वास्तविकता और मानव दिमाग के निर्देशन में होना जरूरी है, नहीं तो ये परेशानी बढ़ती जाएगी।
जीएसटी से जुड़े मामलों के एक्सपर्ट, पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट, जब टैक्स के नंबरों और कागजों से फुर्सत मिलती है तब कार्टून पर हाथ आजमा रहे होते हैं।